‘परेशानी’ क्यू बुरा नाम पाती है?…

‘परेशानी’ क्यू बेवजह बुरा नाम पाती है?…

यही तो हमको हमारे सच्चे दोस्तो से रूबरू करवाती है…

लाख करे नफ़रत हम उससे, जाते हुए भी हमे ख़ुसीयों की सौगात दे जाती है…

फिर भी क्यू ‘परेशानी’ ये बुरा नाम पाती है?…@};-

दोस्ती के नाम…

प्यास लगी हमे जो, बारिश रब्ब कर गये…
मेहेरबान होकर हमपर ऐसी रहमत फिर कर गये…

छाए काले बादल अकेलेपन के जो, रोशन नज़ारे कर गये…
अहबाब आपसे दे कर फिर राज़ी हमे कर गये…@};-

नयी मंज़िल…

नयी राह है, नयी मंज़िल, एक नयी ज़िंदगी की तलाश…नही हमे है अब सागर की आरज़ू, बस बारिश के एक बूँद की प्यास…@};-

नशा…

ना नरमदिल,

ना आशिक़ मिजाज़ है हम…

यह तो उनकी मोहोब्बत का नशा है,

जो शायर हुए है हम…@};-